रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस RA और आयुर्वेद: फायदा या नुकसान

क्या मुझे अपने RA को ठीक करने के लिए आयुर्वेद को आजमाना चाहिए?
क्या आयुर्वेद RA में असरदार है या उसे ठीक करता है?

ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह साबित कर सके कि आयुर्वेद RA के लिए एलोपैथी जितना या उससे ज्यादा असरदार है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं इसकी वजह यहा विस्तार से समझायी गई है।

क्या RA को पूरी तरह से मिटा सके ऐसा कोई इलाज है?

पहले तो इस बात को समझ ले कि पूरी तरह से ठीक कर सके ऐसा कोई RA का इलाज आज की तारीख में हमारे पास नहीं है। अगर कोई यह कहता है या इस बात का दावा करता है तो या तो उन्हें इसकी पूरी जानकारी नहीं है या फिर वो झूठ बोल रहे हैं।

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RA में असरदार हो ऐसा दावा करने वाले अनुसंधान आयुर्वेद में बहुत ही कम है और उनमें भी ज्यादातर में कंट्रोल आर्म्स नहीं होता।

यहां यह बात याद रखना जरूरी है कि कोई भी दवाई असरदार है या नहीं यह साबित करने के लिए हमें एक परीक्षण करना होता है। इसमें दो समूह होते हैं। एक समूह को साधारण शक्कर की गोलियां (जिनमें कोई दवा नहीं होती) दी जाती है और दूसरे समूह को सही दवाई दी जाती है। इस प्रकार का परीक्षण यह जानने के लिए बहुत ही जरूरी है कि दवाई वाकई में असर करती है या नहीं। इन परीक्षणों में कई बार मरीजों को जब शक्कर की गोलियां असली दवाई बताकर दी जाती हैं और उन्हें यकींन दिलाया जाता हैं की यह दवाई असर करेगी तब बहुत सारे मरीज उन शक्कर की गोलियों से भी बेहतर महसूस करना शुरू कर देते हैं। इसे हम प्लेसिबो इफेक्ट कहते हैं। अगर सही दवाई वाले समूह को इन शक्कर की गोलियों वाले समूह से ज्यादा फायदा हो रहा हो तभी हम कहते हैं कि यह इलाज काम कर रहा है। वह समूह जिसे सही दवाई दी जा रही है उसे ट्रीटमेंट आर्म और जिन्हे नकली दवाई दी जा रही है उस समूह को कंट्रोल आर्म कहा जाता है। सिर्फ अगर ट्रीटमेंट आर्म को ज्यादा फायदा हो रहा हो तो ही उस दवाई को असर कारक माना जाता है।

आयुर्वेद और होम्योपैथी जब RA का इलाज कर सकने का दावा करते हैं तब वो ऐसा अधिकतर तुलनात्मक परीक्षणों के आधार पर नहीं करते हैं। और जब तक तुलनात्मक परीक्षण नहीं किया जाएगा तब तक यह साबित नहीं किया जा सकता कि वाकई में दवाई का असर है या यह मनोविज्ञानिक फायदे हैं। सकारात्मक मानसिक विचारधारा भी बहुत सारी चीजों में अच्छा काम करती है। पर वह अकेले ही RA जैसी गंभीर और जटिल बीमारी का इलाज करने के लिए काफी नहीं है।

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें:

आर्थराइटिस / संधिवात / गठिया रोग क्या होता है  और रह्युमटोलॉजिस्ट (rheumatologist) डॉक्टर किसे कहते हैं ?

चना दाल बंद ना करें – गाउट ( यूरिक एसिड वात ) या अन्य आर्थराइटिस में – Gout / uric acid vaat mein kya khaaein ?

रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस RA- Rheumatoid Arthritis RA hindi

जो आयुर्वेदिक परीक्षण कंट्रोल आर्म्स के साथ किए गए हैं उनमें भी फायदे अति न्यूनतम रहे हैं।

अगर सही इलाज न कराया जाए तो RA एक ऐसी बीमारी है जो हमारे शरीर के हर एक जोड़ को नुकसान पहुंचा सकती है। इस बीमारी को 90 से 100% काबू में करके ही हम जोड़ों को होने वाले नुकसान को रोक सकते हैं। यह सब एलोपैथी से ही मुमकिन है। आयुर्वेद में हुए अच्छे से अच्छे परीक्षण में भी किसी भी मरीज में RA को 90 से 100% तक काबू में नहीं किया जा सका है ।

क्या होगा अगर कोई RA के लिए अप्रमाणित इलाज (आयुर्वेद, होमियोपैथी, एक्यूपंक्चर, इत्यादि) जारी रखे तो?

RA शरीर के अधिकतर जोड़ों को प्रभावित करता है। अगर सही इलाज नहीं लिया जाए तो कुछ ही हफ्तों के अंदर सूजन के कारण जोड़ों को नुकसान पहुंचना शुरू हो जाएगा। जोड़ों को कुछ ही महीने में अपरिवर्तनीय क्षति पहुंचेगी और हो सकता है कि कुछ महीनों या सालों में जोड़ पूरी तरह काम करना बंद कर दे। इससे पहले RA के मरीज जब आयुर्वेद और होमियोपैथी की मौजूदा दवाइयां लेते थे तब भी अधिकतर मरीजों में विकृतियां और जोड़ों की क्षति पायी जाती थी (कृपया नीचे दिया चित्र देखे)। एलॉपथी में हुए अनुसंधानों के कारण आज ऐसे इलाज उपलब्ध है जिनकी वजह से ऐसे विकृतियां और क्षति या तो विकसित ही नहीं होती या फिर बहुत ही धीमी गति से विकसित होती है। ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो यह साबित करता हो की आयुर्वेद RA में होने वाली जोड़ों की क्षति को रोकता है।

RA एक बहुत ही दर्दनाक बीमारी है। अनियंत्रित बीमारी के कारण निरंतर दर्द, जोड़ों में विकृतियां और जीवन में कई तरह की परेशानियां हो सकती है। एलोपैथी, जो कि 90 से 100 प्रतिशत इस बीमारी को नियंत्रित कर सकता है, में अधिकतर मरीज कम दर्द के साथ बेहतर जिंदगी जी सकते हैं।

क्या वजह है कि हमें RA के लिए आयुर्वेद नहीं आजमाना चाहिए?
  • आयुर्वेद के स्पेशलिस्ट ज्यादातर यह दावा करते  है कि RA या अन्य किसी भी प्रकार का गठिया रोग वात दोष या विषाक्त पदार्थों के कारण होता है। यह धारणा पूरी तरह से गलत है। हमारे पास बहुत सारे सबूत और प्रमाण है जो यह साबित करते हैं कि RA हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली के अति सक्रिय होने की वजह से होता है। RA एक स्वप्रतिरक्षित रोग है। हमें अपनी अति सक्रिय प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करना है ना कि विषाक्त पदार्थों को निकालना है जैसा कि आयुर्वेद दावा करता है।
  • आयुर्वेद के वैद्य RA को जड़ से खत्म करने का दावा करते हैं। RA को लेकर उनकी धारणा और उनके अनुसार RA का जो मूल कारण है यह दोनों ही गलत है। फिर वह RA को मूल से खत्म करने का दावा कैसे कर सकते हैं ?
  • एलोपैथी की दवाइयां पूरी तरह से नए अनुसंधानों के आधार पर बनाई हुई है। इन अनुसंधानों से यह पता चला है सभी प्रकार के गठिया अलग-अलग होते हैं और उन सब का इलाज भी अलग होता है। आयुर्वेद में हर प्रकार का गठिया वात दोष के कारण होता है यह माना जाता है। और इसलिए उन सब का इलाज भी एक जैसा होता है। जब बीमारी अलग है तो एक जैसा इलाज कैसे फ़ायदेमन्द होगा ?
  • RA के आयुर्वेदिक इलाज से दस्त हो सकते हैं। इससे किडनी और लीवर को भी नुकसान पहुंच सकता है। कम से कम एलोपैथी में हम यह मानते तो है कि कुछ दुष्परिणाम हो सकते हैं और हमें उनका ध्यान रखना चाहिए। अगर किसी एक दवाई से तकलीफ हो रही है तो हम उसे बदल सकते हैं। RA में आयुर्वेद का इलाज काम नहीं करता और ऊपर से वह यह भी दावा करता है कि उसका कोई दुष्परिणाम नहीं है|

RA या आयुर्वेद: तुलनात्मक अध्यन, रहूमटॉइड आर्थराइटिस में सन्धिवात / गठिया में आयुर्वेदा और होमियोपैथी और अकुपंक्चर के फायदे और नुक्सान

अगर किसी के सभी जांचों में यह प्रमाणित हो जाता है कि उसे RA हैं और फिर भी वह आयुर्वेद या होम्योपैथी का इलाज कराना चाहता है तो, वो कम से कम इन बातों का तो अवश्य ही ध्यान रखे:
  • अगर आपको आराम नहीं रहा हो तो तीन-चार महीने से ज्यादा इलाज ना आजमाएं। अगर आपको नियमित दर्द रहता हो, आपके जोड़ों की सूजन बहुत ही ज्यादा हो तो तुरंत ही एक प्रमाणित रह्युमटोलॉजिस्ट को दिखाएं। यहाँ आपका यह जानना बहुत जरुरी हैं की RA के शुरुआती दौर में एक ऐसा वक्त होता है जब जल्द से जल्द अगर सही इलाज किया जाए तो हम इस बीमारी को 90 से 100% तक नियंत्रण में ला सकते हैं। और इस शुरुआती दौर में एलोपैथी की दवाइयां बहुत ही असरदार तरीके से काम करती है।
  • इस बात का खास ख्याल रखें कि आप एक प्रमाणित आयुर्वेद, होम्योपैथी, हर्बल या यूनानी वैद्य को ही दिखाएं जो कि अच्छी ब्रांडेड दवाइयों का इस्तेमाल करें। बिना नाम वाली दवाइयां और चूर्ण में स्टेरॉयड पाया जाता है जो कि आपको एक बार आराम पहुंचा सकता है या आपका ESR/CRP (सूजन मार्कर) भी कम कर सकता है | लेकिन यह आपको आगे जाकर नुकसान ही पहुंचाएगा।
  • आयुर्वेद और होम्योपैथी से सिर्फ हल्का सा आराम मिल रहा हो तो कृपा यह दवाइयां चालू ना रखें। एलोपैथी के द्वारा आज आरे को अधिकतर मरीजों में 90 से 100% तक नियंत्रित किया जा सकता है। पर यह तभी मुमकिन है जब एलोपैथी का इलाज जल्द से जल्द शुरू किया जाए। आपको आयुर्वेद और होम्योपैथी की दवाइयों से हल्का सा आराम मिल रहा है लेकिन आप की सूजन अभी तक है तो आपके जोड़ों को अभी भी नुकसान हो सकता है।
  • कई हर्बल दवाइयां किडनी और लीवर को भी नुकसान पहुंचाती है। संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें और सारी जांच करवाए और अपने डॉक्टर से भी इस बारे में जरूर बात करें। अपनी सारी जांचे किसी प्रतिष्ठित प्रयोगशाला से ही करवाए।
  • ऐसे डॉक्टर्स या विशेषज्ञ से इलाज ना कराएं जो यह दावा करते हो या यह गारंटी देते हो कि वह आपकी बीमारी का पूरी तरह से ठीक कर देंगे। जैसे कि पहले बताया गया है इस तरह के अधिकतर दावे बिना संपूर्ण जानकारी के किए जाते हैं या फिर झूठे होते हैं।
  • अपने पैसे इस तरह की कल्पनात्मक चिकित्सा पद्धति पर ना गवाएं। अगर आयुर्वेद का इलाज काम नहीं कर रहा हो तो इस पर बहुत ज्यादा रुपए खर्च न करे।
आपके स्वास्थ्य के प्रति शुभकामनाएं।

लेखक: डॉ नीलेश नौलखा एक गठिया रोग विशेषज्ञ (रह्यूएमटोलॉजिस्ट) है। वो मेडिसिन में एमडी (MD, KEM हॉस्पिटल ), रह्यूएमटोलॉजि में डीएम (DM) है। उन्होंने रह्यूएमटोलॉजि में फेलोशिप UK (इंग्लैंड) से की है। वह मुंबई के एकमात्र रह्युमटोलॉजिस्ट है जिनके पास DM की डिग्री हैं । DM रह्युमटोलॉजी भारत में गठिया रोग के विशेषज्ञ कहलाने जाने के लिए सर्वोत्तम डिग्री है ।उनके जीवन का लक्ष्य लोगों की सेवा करना और उन तक सही मेडिकल जानकारी पहुँचाना है। उनके मरीजों का हित ही उनके लिए सर्वोपरि है। वह मुंबई के वॉकहार्ट हॉस्पिटल में प्रैक्टिस करते हैं। आप अगर उनसे संपर्क करना चाहते है तो इन लिंक्स पर क्लिक कीजिये :

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अनुवादक: हिंदी में अनुवाद श्रीमती नूतन लोढ़ा ने किया है।

अस्वीकरण: कई बार इंटरनेट पर आने वाले लेख किसी प्रमाणित मेडिकल लेखक या डॉक्टर के द्वारा नहीं लिखा जाता है। उन पर आंख मूंदकर भरोसा ना करें। हालांकि यह लेख प्रमाणित गठिया रोग विशेषज्ञ (रह्यूमेटोलॉजिस्ट) द्वारा लिखा गया है ना की किसी ब्लॉगर के द्वारा। यहाँ दी गई जानकारी सही है और प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित है।

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