ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) OSTEOARTHRITIS हिंदी में

सामान्य भाषा में बात करें तो आर्थराइटिस का अर्थ है किसी भी प्रकार का जोड़ों का दर्द जिसके साथ सूजन, गर्माहट और लालिमा (inflammation – इन्फ्लैमेशन) के संकेत नजर आते हो। ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) आम जनता में पाया जाने वाला सबसे सामान्य आर्थराइटिस या गठिया रोग है है। इसमें शरीर के एक या अधिक जोड़ प्रभावित हो सकते हैं। यह बढ़ती उम्र के साथ होने वाली एक सामान्य बीमारी है।

चित्र १: सामान्य स्वस्थ घुटने का जोड़ (दायें) OA वाला घुटना (बाएं)। स्वस्थ घुटने के जोड़ दोनों छोर पर सॉफ्ट कुशन (कार्टिलेज की गद्दी) से घिरे हुए होते है और विभिन्न लिगामेंट्स की सहायता से सामान्य रूप से कार्य करते हैं। OA वाले घुटने के जोड़ की cartilage (कार्टिलेज) घिस के पतली और नष्ट होने लग जाती है और वक़्त के साथ जोड़ के दोनों छोर की हड्डियां भी घिसने लगती है।

शरीर के सभी प्रमुख जोड़ दो हड्डियों के छोरों के मिलने से बनते हैं। हड्डियों के यह छोर एक गादी से घिरे हुए होते हैं जिन्हें हम कार्टिलेज (cartilage -उपास्थि) कहते हैं। यह हड्डी के छोर इस गादी के साथ मिलकर जोड़ बनते हैं। जोड़ों के सामान्य रूप से काम करने के लिए ये कार्टिलेज  की गादी बहुत ही महत्वपूर्ण है। हालांकि ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) में ये गादी बिगड़ने लगती है या घिस जाती है। जब यह कार्टिलेज की गादी घिस जाती है और जोड़ों के आसपास की हड्डियों में कुछ और बदलाव आ जाते हैं, तब OA की विभिन्न परेशानियों शुरू हो जाती हैं। अधिक जानकारी के लिए आप निन्मलिखित आर्टिकल भी पढ़ सकते हैं

ऐसे तो ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है। पर सामान्य रूप से यह बीमारी हाथ, घुटने, कूल्हों, कमर (रीढ़ की हड्डी) और पैरों के जोड़ों  में असर दिखाती हैं।

चित्र २: हाथों के OA में उँगलियों की अंत चोर के  जोड़ प्रभावित होते है (लाल चक्र)। इनमे हड्डी बढ़कर सूज जाती है और टेढ़ापन भी आ सकता है। जबकि रह्यूएमटॉइड आर्थरिटिस (RA ) पोरों (नकल्स , knuckle joint) के जोड़ों को भी प्रभावित करता है (पीले चक्र)। रह्यूएमटॉइड आर्थराइटिस (RA) में सूजन, इन्फ्लैमेशन (लालिमा), दर्द और जकड़न, OA के मुकाबले काफी ज्यादा होती है। दोनों के इलाज में काफी फर्क भी होता है। इसलिए हमेशा यह जानना जरुरी होता हे की गठिया रोग का प्रकार क्या है। चित्र में मरीज को सिर्फ हाथों का OA है रह्यूएमटॉइड आर्थरिटिस (RA) नहीं।

हमें ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) का वास्तविक कारण तो अभी तक नहीं पता है। पर यह पता है की यह बढ़ती उम्र के साथ जुड़ा हुआ है। बढ़ती उम्र के कारण घिसे हुए जोड़ ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) में मुख्य भूमिका निभाते हैं। पर यह कोई नियम नहीं हैं। कई लोगों को OA बहुत ही कम उम्र में भी हो जाता है। ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) के अधिकतर मरीजों को बहुत ज्यादा दर्द नहीं होता है। समान मात्रा में OA होने के बावजूद भी अलग मरीज़ों में दर्द कम ज्यादा हो सकता है। हम अभी तक इन सब चीजों को समझने की कोशिश ही कर रहे हैं।

जैसे हमने पहले बताया हम अभी तक OA के कारणों को समझ नहीं पाए है। हां यह पता है कि कुछ ऐसी कारण है जो OA होने के खतरे को बढ़ा देते हैं।

उम्रबढ़ती उम्र के ऑस्टिओआर्थराइटिस कारणों में सबसे सामान्य कारण है। साठ वर्ष से अधिक उम्र के तकरीबन 80% लोगों के से कम एक जोड़ में ऑस्टिओआर्थराइटिस के आसार नजर आते हैं। हो सकता है की OA है, यह सिर्फ एक्स रे से पता चले, मरीज को दर्द हो यह जरुरी नहीं। जैसे कि पहले बताया गया हैं की समान मात्रा में ऑस्टिओआर्थराइटिस होने के बावजूद भी सब के दर्द में समानता हो यह जरूरी नहीं है।

लिंग: किन्ही नामालूम कारणों की वजह से औरतों में OA होने की संभावना ज्यादा है। समान मात्रा में ऑस्टिओआर्थराइटिस होने के बावजूद भी औरतों में पुरुषों के मुकाबले दर्द भी ज्यादा होता है।

मोटापा और वजन: OA उन लोगों में ज्यादा पाया जाता है जो कि मोटे (वह लोग जिनका वजन उनकी उम्र और लंबाई के अनुसार अधिक होता है) होते हैं। इस बात की कुछ प्रमाण भी उपलब्ध है कि जो लोग अपना वजन घटा देते हैं वह ऑस्टिओआर्थराइटिस होने के खतरे को भी कम कर देते हैं।

खेलकूद: कुछ ऐसे भी प्रमाण है जो यह साबित करते हैं कि ऐसे खेल जिन में चोट लगने का खतरा ज्यादा होता है जैसे कि फुटबॉल, कुश्ती, इत्यादि ऑस्टिओआर्थराइटिस का खतरा बढ़ाते है। घुटनों के या किसी और जोड़ कर लिगमेंट में चोट लगने के कारण भी भविष्य में ऑस्टिओआर्थराइटिस का खतरा बढ़ जाता है। यह भी प्रमाणित है कि सिर्फ स्वास्थ्य के लिए बिना किसी प्रतियोगिता की दौड़ या व्यायाम करना OA के खतरे को नहीं बढ़ाता।

पुरानी कोई लिगामेंट या नवचन्द्रक  (meniscus,मेनिस्कस )की चोट: किसी व्यक्ति को अगर कभी भी जोड़ों की सहायक संरचना जैसे लिगामेंट या नवचन्द्रक में चोट लगी हो तो भविष्य में उसे OA होने का खतरा अधिक होता है। इस चोट के इलाज के लिए भले ही वो सर्जरी भी क्यों ना करवा ले फिर भी आगे जाकर चोट लगी जोड़ में ऑस्टिओआर्थराइटिस होने की अधिक संभावना है।

ऑस्टिओआर्थरिटिस (OA) से संबंधित लक्षण क्या है?

दर्द: OA से संबंधित सबसे सामान्य लक्षण है दर्द। ऑस्टिओआर्थराइटिस के शुरुआती दौर में दर्द रुक रुक कर या कम ज्यादा हो सकता है। खास किस्म की गतिविधियों से ये दर्द बढ़ जाता है। मरीजों के कुछ दिन बिना दर्द के और कुछ दर्द के साथ गुजरते सकते हैं।

उदाहरणतः घुटनों के OA में अमूमन सबसे पहला लक्षण मरीजों को सीढ़ियां चढ़ते उतरते वक्त असुविधा या दर्द महसूस होना है।

अकड़न: OA के मरीजों को जोड़ों में अकड़न का भी सामना करना पड़ सकता है। अगर मरीज एक ही स्थिति में कुछ देर के लिए आराम करते हैं तो यह अकड़न बढ़ जाती है। मरीज सुबह सुबह भी जोड़ों में अकड़न महसूस करते हैं पर यह अकड़न अधिकतर 30 मिनट से भी कम रहती है और रह्यूमेटॉयड गठिया (आर्थरिटिस) की तरह तीव्र नहीं होती।

उदाहरणतः: घुटनों के आर्थराइटिस वाले मरीज जब काफी देर तक एक ही जगह बैठ जाते हैं तब उठने के बाद चलना उनके लिए काफी दर्दनाक होता है। परंतु थोड़ा चलने के बाद मरीज सामान्य हो जाते हैं।

सूजन: ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) के कुछ मरीजों को जोड़ों में सूजन हो सकती है। यह सूजन जोड़ों में इनफ्लेम्मेशन के कारन पानी जैसा तरल पदार्थ बढ़ने से हो सकती है। OA वाले जोड़ में हड्डी बढ़ने के कारण  सूजन कठोर (hard ) भी हो सकती है।

चरचराहट: OA वाले जोड़ को हिलने पर चरचराहट की आवाज भी कभी कभी सुनाई देती है।

उदाहरणतः: घुटनों के OA वाले मरीजों में बिना किसी दर्द के चरचराहट की आवाज सुनाई देती है खासकर जब वो चलते यो उठते वक्त अपनी हथेली अपने घुटनों पर रखते हैं।

बहुत सारे जवान या मध्यम आयु वाले लोगों के जोड़ों में से बिना किसी दर्द के चटकने की आवाज आती है। ये सामान्य है और ये OA का लक्षण नहीं है।

ऐसा कोई परीक्षण नहीं है जिसके अकेले से पता चल सके कि किसी को OA है। व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री और दूसरे परीक्षणों से एक गठिया रोग विशेषज्ञ (रह्युमेटोलॉजिस्ट, Rheumatologist ) या हड्डी विशेषज्ञ OA का निदान कर सकते हैं ।
खून की जांच: ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) की निदान के लिए कोई खास खून की जांच नहीं है। अधिकतर ब्लड टेस्ट जो किए जाते हैं वह ज्यादातर दूसरे किसी भी और प्रकार के आर्थराइटिस या गठिया को खारिज करने के लिए किए जाते हैं।

एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड MRI: कभी-कभी ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) के निदान में एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और MRI काफी मददगार साबित होते हैं। परंतु इनकी जरूरत अधिकतर मरीजों को नहीं होती। कई बार OA के शुरुआती दौर में कई मरीजों में एक्स-रे सामान्य होता है। मरीज की मेडिकल हिस्ट्री OA के निदान में सबसे कारगर साबित होती है। अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे आदि यह जानने में मददगार होते हैं कि किसी भी जोड़ में ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) कितना तीव्र है।

OA का निदान कोई प्रशिक्षित रह्यूएमटोलॉजिस्ट या ऑर्थोपेडिक डॉक्टर विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही कर सकते हैं।

चित्र ३: सामान्य घुटनो का एक्स-रे (दाएं)। दोनों घुटनों में OA (बाएं)। OA में अंदर की तरफ जोड़ों के बीच की जगह बहुत ही कम है (लाल तीर)। OA के शुरुआती दौर में एक्स-रे सामान्य हो सकता है और बीमारी का निदान दूसरे लक्षणों के आधार पर किया जाता है।

अधिकतर लोगों को बढ़ती उम्र के साथ मध्यम से औसत ऑस्टिओआर्थराइटिस (OA) होता है। ऐसे मरीजों को मध्यम से औसत दर्द होगा और यह दर्द रुक के होता है। काफी OA के मरीज बिना किसी खास परेशानी के आराम से अपनी जिंदगी गुजार सकते हैं। बस उन्हें नियमित व्यायाम करना होगा और शारीरिक तौर पर सक्रिय रहना होगा। उम्र के साथ हलके फुल्के दर्द का बढ़ना स्वाभाविक है | हालांकि कई मरीजों को मध्यम या प्रगतिशील OA होता है जिसकी वजह से भविष्य में उन्हें बहुत दर्द और विकृतियों का भी सामना करना पड़ सकता है। कुछ मरीजों में OA इतना बढ़ जाता है की मरीज विकलांग भी हो सकता है। हालाँकि ऐसे मरीजों के लिए बहुत सारे सर्जेरी या बिना सर्जरी वाले विकल्प मौजूद है। भविष्य में गठिया रोग की अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारा फेसबुक पेज को लाइक और फॉलो करें ।

ऑस्टिओआर्थरिटिस के इलाज के सामान्य नियम:

OA एक लम्बी और स्थायी बीमारी है और बढ़ती उम्र के कारण होने वाली जोड़ों के उपास्थि (कार्टिलेज) को क्षति इसकी मुख्य वजह है। चूँकि उम्र एक महत्वपूर्ण कारण है इस बीमारी का, बढ़ती उम्र के साथ यह बीमारी भी बढ़ती जाती है। ज्यादातर मामलों में यह बीमारी क्रमिक (काफी धीमे ) रूप से बढ़ती है और सालों लग जाते है मरीज को विकलांग श्रेणी में पहुँचते पहुँचते।

वजन नियंत्रित करने के अलावा ऐसा कोई उपचार नहीं है जो OA की प्रगति को कम कर सकें या रोक सके। अधिकतर उपचार इसलिए किया जाता है ताकि मरीज के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सके और मरीज एक बेहतर जीवन जी सके।

OA के इलाज के लिए बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं। इसके कुछ इलाज बिना दवाइयों होते हैं और कुछ इलाज में दवाइयों के साथ-साथ सर्जरी की भी जरूरत पड़ती है। यहाँ यह समझने की जरूरत है कि हर मरीज अलग होता है और OA वाले हर मरीज के अलग-अलग तकलीफ हो सकती है और अलग-अलग प्रकार के जोड प्रभावित हो सकते हैं। उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज के तकलीफ क्या है?, उनकी रोजमर्रा के जीवन की क्या जरुरत है? और वह इलाज से किस तरह की उम्मीद रखते हैं?

बिना दवाइयों के OA  का उपचार (ऑस्टिओआर्थरिटिस का गैर औषधीय उपचार)

जब ऑस्टिओआर्थरिटिस का इलाज शुरू किया जाता है तब यही सलाह दी जाती है कि यह इलाज बिना दवाइयों के किया जाए। इस प्रकार का उपचार सभी मरीजों के लिए बहुत ही उपयोगी होता है बिना किसी दुष्परिणाम के और हर एक OA के मरीज के लिए यह इलाज का एक हिस्सा होना चाहिए।

मोटापे को नियंत्रित करना या कम करना: हमने पहले ही बता दिया है कि बहुत अधिक वजन या मोटापा OA के खतरे को बढ़ा देता है। अगर मरीज के किसी भी जोड़ में OA हो गया है तो वजन कम करने से OA की प्रगति को धीमा किया जा सकता है। अगर घुटना या कूल्हों के जोड़ में OA वाले मरीज अपना वजन 10% कम कर देते हैं  तो प्रमाणित हैं की उनका दर्द 50% तक कम हो सकता है। अपने वजन को  कम करने को लेकर अगर मरीज गंभीर हैं तो बहुत जरूरी है कि वह किसी अच्छे आहार विशेषज्ञ (dietician , डायटीशियन ) से सलाह ले।

शारीरिक व्यायाम या फिजियोथैरेपी : कसरत बहुत ही महत्वपूर्ण है OA के प्रबंधन में। व्यायाम घिसे हुए जोड़ों को सुधारता नहीं है। कसरत से तो घिसे हुए जोड़ों की आस पास की मांसपेशियों मजबूत बनती है और दर्द को कम करने में मदद मिलती है। इसलिए वह मरीज जो नियमित व्यायाम करते हैं उनसे ज्यादा सक्रिय होते हैं जो व्यायाम नहीं करते। धीरे-धीरे व्यायाम शुरू करें और इसके लिए किसी प्रशिक्षित फिजियोथैरेपिस्ट की सलाह ले। फ़िज़ियोथेरेपिस्ट आपको जिस जोड़ में बीमारी है उसके लिए कोई खास व्यायाम सुझा सकते हैं।

व्यायाम से जरूरी नहीं है कि तुरंत ही राहत मिले। इसका असर महसूस होने में कुछ हफ़्ते लग सकते हैं। हो सकता है कि शुरुआत में व्यायाम करने से दर्द बढ़ जाए। पर यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि व्यायाम के बाद जो भी दर्द हो रहा हो वह 24 घंटे में कम  हो जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो अपने व्यायाम की रफ्तार को घटा दीजिए या किसी प्रशिक्षित फ़िज़ियोथेरेपिस्ट से सलाह ले ताकि वह आपकी बीमारी के हिसाब से आपके लिए व्यायाम तय कर सके।

किसी भी तरह की शारीरिक क्रिया OA के मरीजों की मांसपेशियों को मजबूत करती है। और उनकी दूसरी बीमारियों जैसे कि डायबिटीज, दिल की बीमारी, उच्च रक्तचाप, आदि को नियंत्रित करने में भी मदद करती है।

स्पलिंट या सपोर्ट  :  OA के कुछ मरीजों को खासकर के जिन्हें कलाई / अंगूठे के जोड़ का OA होता है उन्हें हाथ में पट्टी बांधने से बहुत राहत मिल सकती है। यह पट्टी OA को अंगूठे तक बढ़ने से तो नहीं रोक सकती पर अंगूठे को विकृत होने से जरूर रोक सकती है। यह अंगूठी को हिलाते वक्त होने वाले दर्द को भी कम करती है।

जिन मरीजों को पैरों और टकनों का OA होता है वह अगर कुछ खास तरह की इंसोल्स पहने तो उन्हें बहुत आराम मिल सकता है। इंसोल्स और भी ज़्यादा असरदार होंगे अगर मरीज को कुछ खास तरह की तकलीफ हो जैसे कि सपाट पैर (flat feet ) ।

आमतौर पर मरीजों को घुटनों के ब्रेसेस और मोजो की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि यह जोड़ों के आसपास की मांसपेशियों को कमजोर कर देते हैं। (इस तरह के साधन सारा वजन खुद उठा लेते हैं इसलिए मरीजों की मांसपेशियां को काम नहीं करना पड़ता।) जोड़ों के आस-पास की यह कमज़ोर मांसपेशियां दर्द  को और बढ़ा देती है। और मरीज की चाल को अस्थिर बना देती है।  हालांकि इस तरह के सहयोगी साधन थोड़ी देर के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं जैसे की चलते वक्त, सर्जरी के पहले या फिर तब जब सर्जरी मुमकिन ना हो। इस प्रकार  का निर्णय लेने से पहले हमेशा किसी प्रशिक्षित डॉक्टर की सलाह लें।

ऐसे मरीजों के मामले में जिनका OA बहुत ही ज्यादा बढ़ गया हो चलते वक्त लकड़ी का सहारा लेना बहुत ही मददगार हो सकता है और उन्हें गिरने से भी बचा सकता है।

ऑस्टिओआर्थरिटिस के बारे में जानकारी हासिल करें:

अगर कोई मरीज OA के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी हासिल कर लेता है तो यह जानकारी उसे रोजमर्रा के जीवन में इस लंबी और जटिल बीमारी से जूझने में मदद कर सकती है।

समान मात्रा में OA होने के बावजूद भी कुछ मरीजों में दर्द ज्यादा हो सकता है अगर उन्हें सही सहयोग न मिले तो।यह बहुत ही अच्छा होगा कि अगर इस तरह के मरीजों को शारीरिक और मानसिक सहयोग मिले ताकि वह अपनी रोजमर्रा के कार्य को आसानी से कर सकें। अगर कोई उन्हें सकारात्मक रूप से प्रोत्साहित कर सके नियमित व्यायाम करने के लिए तो यह उनके लिए बहुत बड़ी मदद होगी। OA से पीड़ित व्यक्ति अपना एक समूह बना सकते हैं जिसमें वह अपनी परेशानियां दूसरे मरीजों के साथ बांट सकते हैं, नियमित व्यायाम करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, उनकी  तकलीफों को सुन सकते हैं और एक दूसरों को भावनात्मक सहयोग दे सकते हैं।

दवाइयों के साथ ऑस्टिओआर्थरिटिस का उपचार (ऑस्टिओआर्थरिटिस OA 

का औषधीय उपचार)

अधिकतर मरीजों के OA को बिना दवाई वाले उपाय जैसे कि वजन कम करना, कसरत, पट्टी, आदि से नियंत्रित किया जा सकता है। भले ही मरीज को दवाई दी जाये पर यह सारे उपाय भी उसके इलाज का हिस्सा होने चाहिए।

कुछ मरीजों को अपनी बीमारी को नियंत्रित करने के लिए दवाइयों की जरूरत पड़ती है। यहां यह समझ लीजिए कि ऐसी कोई दवाई नहीं है जो निश्चित तौर पर OA को रोक सके या खत्म कर सके। अभी हमारे पास जो भी दवाइयां उपलब्ध है वह सिर्फ OA के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए है ताकि मरीज मामूली दर्द के साथ एक बेहतर जीवन जी सके।

यहां हम फिर यह बात दोहरा रहे हैं कि OA के मरीज को अपना वजन कम करने और नियमित व्यायाम करने पर ध्यान देना चाहिए। ऐसे ना करने पर कोई भी दवाई बहुत अधिक फायदा नहीं पहुंचा सकती।

ऑस्टिओआर्थरिटिस के जोड़ों के लिए स्थानीय लोशन या जेल या चिकित्सा

स्थानीय सूजन कम करने वाले लोशन्स या जेल में एक दवाई आती है जिसे नोनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) कहते हैं। यह दवाइयां जब जोड़ों के यहां की चमड़ी पर लगाई जाती है तब मरीजों को OA के दर्द से आराम मिलता है। यह दवाइयां ज्यादातर हाथ घुटने और दूसरे सतही जोड़ों पर ज्यादा असरदार होती है। यह दवाइया कूल्हों के OA के दर्द में आराम नहीं दे सकती क्योंकि कूल्हों का जोड़ बहुत ही गहरा होता है। इस तरह की जेल में बहुत ही कम मात्रा में NSAIDs औषधि होती है जिसमें बहुत ही कम सोखे जाने की क्षमता होती है जिस वजह से इनका बड़ा दुष्प्रभाव नहीं होता। पर वो मरीज जिन्हें ब्लड प्रेशर, गुर्दे या दिल की कोई शिकायत हो उन्हें यह दवाइयां लेने से पहले अपने डॉक्टर से विचार-विमर्श कर लेना चाहिए।

नोनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs): NSAIDs जैसे की आइबूप्रोफेन, डिक्लोफेनेक, नेप्रोसीन, इण्डोमेथासिन, आदि दवाइयां को भारतीय जनता आम भाषा में दर्द निवारक (pain killer , पेन किलर) दवाइयों के रूप में जानती हैं। यह सिर्फ दर्द से ही निजात नहीं दिलाती बल्कि सूजन को भी कम करने में मदद करती हैं। परन्तु इनका सेवन करने से पहले मरीज को अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए क्योंकि यह दवाइयां एसिडिटी, दिल, गुर्दे, ब्लड प्रेशर आदि बीमारियों में बहुत ही नुकसानदायक हो सकती हैं।

विशेषज्ञ मरीजों के फायदे के लिए इन दवाइयों का इस्तेमाल थोड़े समय के लिए या कभी-कबार कर सकते हैं। यह दवाइयां एकदम कम समय के लिए एकदम कम मात्रा में ली जाती है ताकि इनके दुष्प्रभावों को रोका जा सके। यह बिना किसी विशेषज्ञ की राय के नहीं ली जानी चाहिए। कभी किसी मरीज को यह दवाइयां लंबे समय के लिए एकदम कम मात्रा में दी जा सकती है। इन मरीजों को यह जानकारी होनी चाहिए कि इसके क्या दुष्प्रभाव हैं और उनके गुर्दे (kidney), जिगर (liver), आदि की नियमित जांच की जानी चाहिए।

जेल (gel) में बहुत ही कम मात्रा में यह औषधि होती है और जब इसे लगाया जाता है तो शरीर इसे बहुत ही कम मात्रा में सोखता है इसलिए यह गोलियों से ज्यादा सुरक्षित है।

पेरासिटामोल: OA के बुजुर्ग मरीजों के इलाज के लिए पेरासिटामोल  बहुत ही सुरक्षित दवाई है।  ज्यादा से ज्यादा किसी को दिन भर में 3 से 4 ग्राम पेरासिटामोल दी जा सकती है। यह  दवाइयों NSAIDs जितनी असरदार तो नहीं है क्योंकि इसमें सूजन को कम करने की क्षमता नहीं है और ना ही यह दर्द में बहुत अधिक आराम देती है। पर लंबे समय के लिए यह एक बहुत ही सुरक्षित दवाई है और मरीजों को काफी हद तक आराम भी दे सकती है। और डॉक्टर की सलाह के अनुसार लेने पर यह दिल और गुर्दे (kidney) को नुकसान भी नहीं पहुंचाती।

पेरासिटामोल कि सामान्य मात्रा 500 मिलीग्राम है जो कि बुखार होने पर में दिन में तीन या चार बार ली जाती है। परंतु 500 मिलीग्राम दर्द से छुटकारा पाने के लिए असरदार नहीं है। मरीज को 650 मिलीग्राम से 1 ग्राम दिन में दो-तीन बार लेनी पड़ती है दर्द से आराम पाने के लिए। यह दवाई लेते हुए मरीज को सावधानी बरतनी होगी और यह इस बात का खास ख्याल रखना होगा कि वह दिन भर में 3 या 4 ग्राम से अधिक दवाई ना ले। (नीचे दी गयी तालिका देखे)

पेरासिटामोल गोली की क्षमताएक दिन में सुरक्षित रूप से ले सकने वाली अधिकतर गोलियां (24 घंटों में  ग्राम से ज्यादा मात्रा  ले)*
500 मिलीग्राम8 गोलियां
650 मिलीग्राम6 गोलियां
1 ग्राम4 गोलियां

* अपने डॉक्टर से इस बात की पुष्टि कर ले।

ज्यादा से ज्यादा पेरासिटामोल कितनी मात्रा में ली जा सकती है यह जानने के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। और अपने जिगर (liver) की नियमित जांच करते रहना चाहिए।

बिना NSAIDs वाली दर्द निवारक दवाइयां: भारत में ओपिओइड दवाइयां जैसे कि ट्रामाडोल (या टपेंटाडोल) गोलियां या कैप्सूल्स, बुप्रेनोरफिन पैचेज नियमित तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं। हालांकि इस बात का पक्का साबुत हैं कि इन दवाइयों को लेने की वजह से मरीज इन पर निर्भर होने लगता है। इन दवाइयों की से जी घबराना, कब्ज, चक्कर आना, आदि परेशानियां भी शुरू हो जाती हैं। बुजुर्ग मरीजों के लिए तो यह दवाइयां बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है और बहुत ही कम मात्रा में दी जानी चाहिए। इन दवाइयां की सलाह नियमित रूप से OA के दर्द से निजात पाने के लिए नहीं दी जाती है।

दर्द कम करने के लिए न्यूरोमोड्यूलेटर: OA या ओर किसी भी बीमारी में दर्द एक से अधिक पहलुओं वाला हो सकता है। इस बात के सबूत हैं कि OA कि कुछ मरीजों की तंत्रिकाएं (nerves) या नसें बहुत ज्यादा संवेदनशील हो जाती हैं जिसकी वजह से उनका दर्द बढ़ जाता है। कुछ विशेषज्ञ सलाह देते है कि कम मात्रा में न्यूरोमोड्यूलेटर दवाइयां जैसे कि दुलोक्सेटीन, प्रेगबालिन, गाबापेन्टिन, आदि लेने से OA के मरीज को आराम मिलता है। यह दवाइयां खास करके रीड की हड्डी के OA में बहुत ही ज्यादा असरदार होती है विशेष तौर पर तब जब तंत्रिका पर कोई दबाव पड़ रहा हो। तकनिकी रूप से यह दर्द निवारक नहीं है परंतु यह तंत्रिका में होने वाले दर्द को नियंत्रित कर सकते हैं। यहां हम फिर आपको कह रहे हैं की यह दवाइयां विशेषज्ञ के दिशा निर्देश में ही लेनी चाहिए।

जोड़ों में इंजेक्शन: ग्लुकोकोर्टीकोइड या स्टेरॉयड के इंजेक्शन OA के कुछ मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होते है। यह अधिकतर तब काम आते हैं जब मरीज को थोड़ी बहुत भी सूजन हो। यह सामान्य तौर पर तो सुरक्षित माने जाते हैं। कुछ ऐसे सबूत है जिनसे यह पता चलता है कि बार-बार इस तरह के इंजेक्शन घुटनों में देने की वजह से OA की प्रगति जरा सी तेज हो जाती है। इसीलिए ज्यादातर डॉक्टर साल भर में किसी भी एक OA जोड़ में 3-4 से ज्यादा इंजेक्शन नहीं लगाते।

ऑस्टिओआर्थरिटिस के लिए अनिश्चित फायदे वाले उपचार
जोड़ों में जेल इंजेक्शन:

घुटनों के लिए खास किस्म के जेल, जिन्हे ह्यलुरॉनिक (hyaluronic) जेल कहते हैं, वाले इंजेक्शन मिलते हैं। इन के फायदे अनिश्चित है, इनका असर बहुत लंबे समय तक नहीं रहता और यह बहुत ही ज्यादा महंगे हो हैं (एक जोड़ में जैल इंजेक्शन का खर्च ५०००-१२००० रूपये तक का हो सकता है।

प्रचुर मात्रा में प्लेटलेट वाले प्लाज्मा (PRP) के इंजेक्शन घुटनों में :

इस प्रक्रिया में मरीज का स्वयं का खून निकाला जाता है और उसमें से प्लेटलेट अलग किए जाते हैं और जिस जोड़ में तकलीफ है वहां पर इंजेक्शन के द्वारा डाले जाते हैं। यह निश्चित नहीं है कि इस प्रक्रिया का कोई खास फायदा होता है या नहीं। काफी मरीज यह कहते हैं कि उन्हें आराम मिलता है पर फिर भी यह निश्चित नहीं है कि यह आराम इन इंजेक्शन की वजह से मिलता है या फिर दूसरे नियमित इलाज के कारण।

मूल कोशिका /स्टेम सेल (stem cell ) के इंजेक्शन OA वाले जोड़ों में:

आजकल भारत में बहुत सारी जगहों में मरीज को खुद की ही मूल कोशिकाओं के इंजेक्शंस पीड़ित जोड़ों में लगाने की सलाह दी जाती है। यह बहुत ही महंगे होते हैं और इनका कोई निर्णयात्मक फायदा अब तक नहीं पता है। इस प्रकार की प्रक्रिया के लिए कोई निश्चित दिशा निर्देश नहीं है और ना ही कोई ऐसे नियामक अधिकारी हैं जो इस तरह की प्रक्रिया पर नजर रख सकें। फिलहाल इस तरह के इलाज से मरीजों को दूर रहना चाहिए। ज्यादातर मामलों में इस तरह की प्रक्रिया में लगने वाले रुपयों को जोड़ों को बदलने की सर्जरी में खर्च किया जाए तो वह कहीं ज्यादा फायदेमंद होगा खास करके घुटनों और कूल्हों के OA के मामलों में।

ग्लूकोसामिन और इस तरह के उपचार ऑस्टिओआर्थरिटिस में :

कई ऑस्टिओआर्थरिटिस के मरीजों को नियमित तौर पर ऐसी दवाइयां की सलाह दी जाती हैं जिनमें ग्लूकोसामिन (glucosamine) या कोंड्राइटिन सलफेट (chondroitin सल्फेट) होता है (उदाहरण : टेबलेट Rejoint, lubrijoint active , इत्यादि। बहुत सारे डॉक्टर डाइसरीन (diacerin) की भी सलाह मरीजों को देते हैं। हालांकि इस बात का कोई निर्णयात्मक सबूत नहीं है कि इस तरह की दवाइयों से मरीजों के OA का दर्द कम होता है। दवाइयों पर हुए कुछ परीक्षणों में इनका फायदा दिखता है और कुछ में नहीं दिखता है। इनका इस्तेमाल करने में कोई बहुत बड़ा नुकसान नहीं है पर फिर भी यह दवाइयां लेने से पहले अपने डॉक्टर की राय जरूर ले।

आयुर्वेद, हर्बल उपचार, वैकल्पिक दवाइयां (होम्योपैथी, चाइनीस, आदि) और प्राकृतिक चिकित्सा ऑस्टिओआर्थरिटिस के इलाज में
बाजार में बहुत सारी हर्बल/प्राकर्तिक/वैकल्पिक उपचार उपलब्ध हैं जो कि यह दावा करते हैं कि वह ऑस्टिओआर्थरिटिस (OA) के मरीजों को आश्चर्यजनक आराम दे सकते हैं। बहुत से मरीज भी यह कहते हैं कि उन्हें इस तरह के इलाज से काफी आराम मिला है। इस तरह के इलाज में हल्दी या मेथी की गोलियां, चाइनीस हर्बल उपचार, शल्लकी (Boswellia) का रस, आयुर्वेद की गोलियां या तेल, होम्योपैथी दवाइयां आदि उपचार शामिल है। इस तरह के उपचार ज्यादातर बहुत ही महंगे होते हैं और इनके फायदों का कोई सबूत भी नहीं है। फिर भी क्योंकि यह ज्यादातर सुरक्षित होते हैं अधिकतर डॉक्टर ऐसे उपचारों से दूर रहने पर ज्यादा जोर नहीं देते।

हर्बल या आयुर्वेद उपचार मरीजों के गुर्दे या लिवर को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए हर्बल उपचार करने से पहले संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें। यह इसलिए होता है क्यूंकि काफी बार इन दवाइयों में काफी हैवी मेटल्स होते हैं | इस तरह की इलाज यह दावा करते हैं कि इनसे कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होता जो कि अधिकतर गलत साबित होता है। ऑस्टिओआर्थरिटिस के मरीज को चाहिए कि वह इस तरह की कोई भी अगर इलाज कर रहा कर रहा हो तो अपने विशेषज्ञ को जरूर बताएं और उनसे इस मामले में राय ले।

ऑस्टिओआर्थरिटिस के अन्य उपचार
OA के और भी बहुत सारे इलाज अनियंत्रित भारतीय चिकित्सा बाजार में उपलब्ध हैं जो यह दावा करते हैं कि वह OA की बीमारी में बहुत ही ज्यादा प्रभावी है। उदाहरण के लिए प्राकृतिक चिकित्सा, चुंबकीय चिकित्सा, बिजली के झटके, सेराजेम मसाज, आदि। इस तरह के उपचार सामान्यतः बहुत ही महंगे होते हैं, इनका कोई निश्चित फायदा नहीं होता है, कई बार यह फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं। हो सके तब तक तो मरीजों को ऐसे उपचारों से दूर ही रहना चाहिए और अगर वह ऐसा कोई उपचार आजमाना चाहते हैं तो बहुत ही बेहतर होगा कि वह किसी प्रशिक्षित डॉक्टर से इस बारे में राय ले।

ऑस्टिओआर्थरिटिस में शल्य चिकित्सा/सर्जरी
सर्जरी आमतौर पर ऑस्टिओआर्थरिटिस के मरीजों के लिए सबसे आखिरी विकल्प होता है खासकर की तब जब उनका OA बहुत ज्यादा बढ़ गया हो और उन्हें अन्य उपचारों से फायदा नहीं मिल रहा हो। बहुत अधिक प्रगतिशील OA के मरीजों में उपास्थि बहुत ही घिस चुकी होती है, उनके जोड़ विकृत हो चुके होते हैं और उन्हें बहुत ही अधिक दर्द होता है।

OA के मरीजों के लिए उपलब्ध सर्जरी के प्रकार

जोड़ों को बदलने की सर्जरी: OA के मरीजों में सबसे आम सर्जरी जो की जाती है वह घुटनों और कूल्हों को बदलने की सर्जरी जो कि आंशिक या पूर्ण रूप से हो सकती है। इस प्रकार की सर्जरी तभी की जाती है जब मरीज 55 से 60 साल का हो। क्योंकि बदला हुआ जोड़ औसतन 15 साल तक चलता है। उसके बाद मरीज को फिर से जोड़ बदलने की जरूरत पड़ सकती है। और दुबारा पहले वाले जोड़ को सर्जरी कर के बदलना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। औसतन भारतीय व्यक्ति की उम्र 70 से 75 साल की होती है। इसलिए डॉक्टर OA के मरीज को 60 साल या उससे ऊपर की उम्र में सर्जरी कराने की सलाह देते हैं ताकि उन्हें अपने जीवन में उसी जोड़ को सर्जरी के द्वारा वापस बदलने की जरूरत ना पड़े।

ऐसे मरीज जो अपेक्षाकृत कम उम्र के हो और जिनके जोड़ो के एक  भाग में ही OA का असर  हो उन्हें विशेषज्ञ पुनर्निर्माण  सर्जरी या फिर आंशिक (आधा / partial / semi ) रूप से जोड़ बदलने की सर्जरी करने की सलाह देते हैं। इस प्रकार की सर्जरी से  चलने फिरने में ज्यादा दिक्कत नहीं आती और उनका जोड़ भी सामान्य या जन्मजात जोड़ की तरह जाता हो।  हो सकता है  उन्हें भविष्य में कभी पूरा जोड़  बदलने की जरूरत ही  ना पड़े और अगर जरूरत पड़े  भी तो वह बहुत आसानी से पूरा जोड़  बदलवा सकते हैं। आंशिक बदले हुए जोड़  को पूरी तरह से बदलना काफी आसान है। बनिस्पत इसके की एक बार पूरा बदला हुआ जोड़ दुबारा बदला जाए। इसीलिए कुछ खास  मरीजों में पुनर्निर्माण सर्जरी या  आंशिक रूप से जोड़ बदलने वाली सर्जरी  काफी फायदेमंद हो सकती है।

फ्यूज़न  सर्जरी: फ्यूज़न  सर्जरी (चिकित्सीय  भाषा में अर्थ्रोडेसिस)  सामान्य तौर पर उन मरीजों को इसकी सलाह  दी जाती है जिन्हे बहुत ही तीव्र OA हो। उनके जोड़ों को बदलना नामुमकिन हो और उन्हें बहुत अधिक दर्द हो। इस तरह की सर्जरी अधिकतर एंकल (ankle , पर के टकने का जोड़ ) के OA वाले मरीजों में की जाती है। फ्यूज़न  सर्जरी में जोड़ों के छोर को मिला दिया जाता है जिससे कि  जोड़ों को हिलाने  में थोड़ी कठिनाई होती है पर  दर्द  बहुत कम हो जाता है। इस  प्रकार की सर्जरी में उस जोड़ की मूवमेंट काम हो जाती है, पर दर्द  से निजात पाने पर जोर दिया जाता है। फ्यूज़न सर्जरी कुछ खास चयनित मरीजों के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है।

लेखक: डॉ नीलेश नौलखा एक गठिया रोग विशेषज्ञ (रह्यूएमटोलॉजिस्ट) है। वो मेडिसिन में एमडी (MD, KEM हॉस्पिटल ), रह्यूएमटोलॉजि में डीएम (DM) है। उन्होंने रह्यूएमटोलॉजि में फेलोशिप UK (इंग्लैंड) से की है। वह मुंबई के एकमात्र रह्युमटोलॉजिस्ट है जिनके पास DM की डिग्री हैं । DM रह्युमटोलॉजी भारत में गठिया रोग के विशेषज्ञ कहलाने जाने के लिए सर्वोत्तम डिग्री है ।उनके जीवन का लक्ष्य लोगों की सेवा करना और उन तक सही मेडिकल जानकारी पहुँचाना है। उनके मरीजों का हित ही उनके लिए सर्वोपरि है। वह मुंबई के वॉकहार्ट हॉस्पिटल में प्रैक्टिस करते हैं। आप अगर उनसे संपर्क करना चाहते है तो इन लिंक्स पर क्लिक कीजिये : Linkedin: https://www.linkedin.com/in/drnileshnolkharheumatologist/ Twitter profile/handle:

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अनुवादक: हिंदी में अनुवाद श्रीमती नूतन लोढ़ा ने किया है।

अस्वीकरण: कई बार इंटरनेट पर आने वाले लेख किसी प्रमाणित मेडिकल लेखक या डॉक्टर के द्वारा नहीं लिखा जाता है। उन पर आंख मूंदकर भरोसा ना करें। हालांकि यह लेख प्रमाणित गठिया रोग विशेषज्ञ (रह्यूमेटोलॉजिस्ट) द्वारा लिखा गया है ना की किसी ब्लॉगर के द्वारा। यहाँ दी गई जानकारी सही है और प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित है।

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