आर्थराइटिस / संधिवात / गठिया रोग क्या होता है और रह्युमटोलॉजिस्ट (rheumatologist) डॉक्टर किसे कहते हैं ?

आर्थराइटिस (Arthritis) या संधिवात (sandhivaat) या गठिया रोग (Gathiya rog) क्या होता है ?

सिंपल भाषा में कहा जाए तो आर्थराइटिस का मतलब है किसी भी प्रकार का जोड़ों में दर्द जो सूजन, लाली और गर्माहाट के साथ होता है।सिर्फ मामूली जोड़ों के दर्द (joint pain) होने का मतलब यह नहीं है की आपको गठिया रोग या आर्थराइटिस हो गया है। किसी को गठिया रोग कहने के लिए जोड़ो में इनफ्लेम्मेशन (inflammation) के लक्षणों (सूजन, लाली, दर्द और गर्माहाट) का होना जरूरी है |

मेडिकल फील्ड में यह रह्युमेटोलॉजी (rheumatology) क्षेत्र क्या है?

रह्युमेटोलॉजी मेडिक्सल फील्ड का एक श्रेत्र है जो जोड़ो के दर्द, आर्थराइटिस (वात / गठिया रोग ) और इसी तरह के अन्य लक्षणों वाले रोगों से संबंधित है। इस शब्द का जन्म रयूमैटिस्म (rheumatism) शब्द से हुआ है जिसका सिंपल भाषा में अर्थ है किसी भी प्रकार के शारीरिक दर्द से संबंधित होना | ज्यादातर रह्युमेटोलॉजी (rheumatology) की बीमारियां एक विशेष प्रकार का आर्थराइटिस / vaat rog होती है। मगर वह शरीर के किस अंग पर असर करेगी यह बीमारी किस प्रकार की है इस पर निर्भर करता है। चूँकि लगभग सभी रह्युमेटोलॉजी बीमारीयों में जोड़ो पर असर पड़ता है, इसलिए ज्यादातर लोग समझते है की रह्युमटोलॉजी (rheumatology) का क्षेत्र सिर्फ गठिया या वात रोगो (आर्थराइटिस) से सम्बंधित है | ऐसा कदापि नहीं है | रह्युमेटोलॉजी (rheumatology) फील्ड में ऐसी बहुत सारी बीमारियां पायी जाती है जो जोड़ों के दर्द के साथ साथ शरीर के बहुत सारे दूसरे अंगो को नुक्सान पंहुचा सकती है और गंभीर भी हो सकती है | हर वात रोग या गठिया रोग एक जैसा नहीं होता। सन्धिवात या आर्थराइटिस (arthritis) के १०० से भी ज्यादा प्रकार है और हर प्रकार के लक्षण, गंभीरता और इलाज अलग अलग हो सकते हैं | बच्चों और युवाओं को भी बहुत प्रकार के गठिया रोग या आर्थराइटिस या रह्युमेटोलॉजी बीमारियां हो सकती हैं। इन बीमारियों का होने का खान पान से कोई लेना देना नहीं है |


रह्युमेटोलॉजी (rheumatology) बीमारीयां ज्यादातर जोड़ों (joints) पर असर करती है, लेकिन वह शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार की बीमारी है। रह्युमेटोलॉजी (rheumatology) की ज्यादातर बिमारी में गठिया रोग / arthritis होने के कारण ज्यादातर सामान्य डॉक्टर भी इस फील्ड को गठिया रोग / सन्धिवात / आर्थराइटिस के फील्ड के नाम से जानते है | वात रोग / आर्थराइटिस / सन्धिवात बच्चों और युवा लोगो में भी हो सकता है | यह बीमारियां जोड़ो के साथ दूसरे अंगो को भी प्रभावित कर सकती है और काफी गंभीर भी हो सकती है (अधिक जानकारी के लिए नीचे पढ़िए ) |

 

खान पान और वात से सम्बंधित गलतफहमियों और ज्यादा जानकारी के लिए नीचे दिया गया आर्टिकल पढ़िए

चना दाल बंद ना करें – गाउट ( यूरिक एसिड वात ) या अन्य आर्थराइटिस में ? क्या वात का सम्बन्ध खान पान से होता है ? सन्धिवात या गठिया रोग में किसी खान पान के परहेज की जरुरत होती है ?

कुछ सामान्य या कॉमन रूमेटोलॉजी की बीमारियां का नाम निम्नलिखित है:-
  • ऑस्टोऑर्थरिटिस (Osteoarthritis)
  • रयूमैटाॅइड आर्थराइटिस(rheumatoid arthritis)
  • गाउट गठिया (gout)
  • फाइब्रोमायल्जिया(fibromyalgia)
  • एंकिलाॅजिंग स्पाॅन्डिलाइटिस(ankylosing spondylitis)
  • रिएक्टिव आर्थराइटिस (reactive arthritis)
  • सोराइटिक आर्थराइटिस(psoriatic arthritis)
  • सिस्टमिक लूयूपस एरिथेमाटोसस(SLE- systemic lupus erythematosus)
  • स्क्लेरोडर्मा (Scleroderma)
  • Sjogren syndrome (शोग्रेन सिंड्रोम )
  • वास्क्युलिटिस (Vasculitis)
  • मायोसिटिस (Myositis)

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ज्यादातर रयूमैटालाॅजी(rheumatology) मेडिकल फील्ड की बीमारियां ऑटोइम्म्युन (autoimmune) बीमारियां होती है

इम्यून सिस्टम (immune system ) हमारे शरीर को अंदरूनी और बाहार की (जैसे की इन्फेक्शन) आदि बीमारीयों से बचाता है ।इम्यून सिस्टम को हिंदी की सरल भाषा में रोग प्रतिरोधक शक्ति या प्रतिरक्षा प्रमाण प्रणाली भी कहा जा सकता है। जैसे किसी भी बड़ी कंपनी में बहुत सारे विभाग या डिपार्टमेंट होते हैं वैसे ही हमारे शरीर के इस इम्यून सिस्टम या रोग प्रतिरोधक शक्ति के बहुत से विभाग या अलग अलग काम होते हैं | ऑटोइम्म्युन (autoimmune) बीमारियां वह बीमारियां होती है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति (immune system) का एक विभाग अपने आप ही यानी की ऑटोमेटिकली (automatic) अधिक सक्रीय होकर स्वयं के शरीर के अंगो को नुक्सान पहुंचाने लगता है । अभी तक हम अभी तक पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं कि यह ऑटोइम्म्युन (autoimmune) प्रकिया क्यों कुछ ही व्यक्तियों में सक्रिय होती है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि यह समस्या कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) नहीं बल्कि अत्याधिक सक्रिय इम्यून सिस्टम की है।

किसी कारणवश बहुत सारी ऑटोइम्म्युन बीमारियों में जोड़ काफी प्रभावित होते हैं । इसलिए अधिकतर रयूमेटिक रोगियों को आर्थराइटिस होता है।जैसा की हमने पहले भी कहा है, इन रोगो के बहुत से प्रकार होते हैं और यह एक दूसरे से काफी अलग हो सकते हैं | जिस प्रकार यह अत्यधिक सक्रिय रोग प्रतिरोधक शक्ति अपने ही जोड़ो को नुक्सान पहुँचाती है, वैसे ही अन्य अंगो को भी नुक्सान पंहुचा सकती है | बहुत सारी रह्युमेटोलॉजी बीमारियों में जोडो के साथ स्किन (चमड़ी), मांसपेशियों, ह्रदय , आँखों , फेफड़े , गुर्दे , इत्यादि अंगो पर असर पड सकता है | इसलिए किसी भी गठिया रोग को सिंपल या सरल रोग नहीं मानना चाहिए और इलाज करवाने से पहले यह बहुत जरुरी है की यह पता किया जाए की इसका प्रकार कौन सा है, तभी इन रोगों का सही और उचित इलाज संभव है |


ज्यादातर रयूमैटालाॅजी(rheumatology) मेडिकल फील्ड की बीमारियां में अपने ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्यून सिस्टम स्वयं ही (ऑटोमेटिकली) अपनेआप अत्यधिक सक्रिय होकर स्वयं के शरीर को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए ऐसी बीमारियों को ऑटोइम्म्युन (autoimmune) बिमारी भी कहा जाता है | इस बीमारी का सामान्यतः जोड़ों पर असर होता है।इसलिए ज्यादातर रह्युमेटोलॉजी बीमारियों में गठिया / वात रोग पाया जाता है और इसलिए रह्युमटोलॉजिस्ट को गठिया रोगो / वात रोगों / सन्धिवात / आर्थराइटिस का फिजिशियन भी कहा जाता है | यह भी ध्यान रखने वाली बात हैं की सभी गठिया रोग एक प्रकार के नहीं होते और कुछ गठिया रोगो में शरोर के दूसरे अंगो पर भी असर पड़ सकता है | इसलिए किसी भी गठिया रोग के इलाज से पहले यह जानना बहुत जरुरी होता की कौनसे प्रकार का गठिया रोग है |

 

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रयूमेटोलोजिस्ट(rheumatologist) डॉक्टर या गठिया रोग / सन्धिवात रोग / वात रोग (आर्थराइटिस) विशेषज्ञ कौन होता है?

एक रयूमेटोलोजिस्ट वह चिकित्सक(doctor) होता है जो खास तौर पर रयूमेटिक रोगो और विभिन्न प्रकार के आर्थराइटिस की जांच करने और उनका दवाइयों से इलाज करने में प्रशिक्षित होता है। उन्हें बोलचाल की भाषा में जोड़ों के दर्द या आर्थराइटिस / सन्धिवात का डॉक्टर या फिजिशियन (physician) भी कहा जाता है। पर जैसा की हमने पहले बताया है की यह बीमारियां बड़ी पेचीदा और गंभीर हो सकती है | यह बीमारियां जोड़ो के साथ साथ दूसरे अंगो को भी नुक्सान पहुंचा सकती है | ज्यादातर कॉम्प्लेक्स या पेचीदा गठिया रोगों का इलाज दवाइयों से होता है, जिसमे काफी प्रशिक्षण लगता है | इसलिए रह्युमेटोलॉजी (rheumatology) एक स्पेशल फील्ड है और रह्युमटोलॉजिस्ट (rheumatologist ) एक स्पेशलिस्ट डॉक्टर | वो आर्थोपेडिक (orthopaedic) डॉक्टर से अलग होते हैं जो कि फ्रैक्चर (fracture) और जोड़ों (joint) के शल्य चिकित्सक (surgeon) होते हैं। ओर्थपेडीक डॉक्टरों को काम्प्लेक्स या पेचीदा गठिया रोग / वात / आर्थराइटिस रोगों को दवाइयों से इलाज करने का प्रशिक्षण नहीं मिलता, लेकिन वह शल्य चिकित्सा में माहिर होते हैं | रह्युमेटोलॉजीस्ट (rheumatologist) डॉक्टर, गठिया रोग / सन्धिवात / आर्थराइटिस रोगो के फिजिशियन होते हैं और आर्थोपेडिक डॉक्टर की तरह शल्य चिकित्सा या जोड़ो की सर्जरी या जॉइंट रिप्लेसमेंट नहीं कर सकते हैं | यह दोनों अलग फील्ड है और यह बहुत जरुरी है की सही प्रॉब्लम के लिए सही डॉक्टर को दिखाया जाए |


रयूमेटोलोजिस्ट(rheumatologist) डॉक्टर, गठिया रोग / सन्धिवात / आर्थराइटिस रोगो के फिजिशियन होते हैं और आर्थोपेडिक डॉक्टर की तरह शल्य चिकित्सा या जोड़ो की सर्जरी या जॉइंट रिप्लेसमेंट नहीं कर सकते हैं | ज्यादातर गंभीर गठिया रोगो का इलाज दवाई से होता है और इसमें रह्युमेटोलॉजीस्ट फिजिशियन डॉक्टर प्रशिक्षित होते हैं | जोड़ों से सम्बंधित होने के बावजूद रह्युमेटोलॉजी (rheumatology) और आर्थोपेडिक्स (orthopedics) यह दोनों अलग फील्ड है और यह बहुत जरुरी है की सही प्रॉब्लम के लिए सही डॉक्टर को दिखाया जाए |

ज्यादातर गठिया रोग जिसमे बहुत इन्फ्लेम्शन (सूजन, लाली , जकड़न इत्यादि ) होता है (जैसे की रहूमटॉइड आर्थराइटिस , Rheumatoid arthritis इत्यादि ऊपर बताये गए रह्युमटोलॉजी के रोग ), उनका अगर सही टाइम पे रयूमेटोलोजिस्ट (rheumatologist) डॉक्टर द्वारा दवाई से सही इलाज करने पर जोड़ो को खराब होने से बचाया जा सकता है | अगर उम्र के तकाजे के साथ या किसी कारणवश अगर किसी गठिया रोग से यह जोड़ पूरी तरह से खराब हो जाते हैं तो फिर आर्थोपेडिक डॉक्टर की सलाह लेकर जोड़ो का रिप्लेसमेंट करवाया जा सकता है | लेकिन किसी भी रहूमटॉइड आर्थराइटिस या अन्य गंभीर गठिया रोग का सही इलाज करवाने से जोड़ो को बहुत कम या ना के बराबर नुक्सान पहुँचता है | इससे जोड़ो के बदलवाने या रिप्लेसमेंट की प्रमुख या मेजर सर्जरी के चान्सेस को काफी काम किया जा सकता है |


रूमेटिक बीमारियों के आरंभिक प्रभावी उपचार से गंभीर जोड़ों की क्षति को रोका जा सकता है जिससे की जोड़ो को रेप्लस करने की प्रमुख सर्जरी के चान्सेस को काफी कम किया जा सकता है | गंभीर रयूमेटिक बीमारियों में सही और जल्दी उपचार रोगी को जोड़ो के अलावा अन्य प्रमुख अंगो को क्षति से बचाने में मदद कर सकता है।

 

इसलिए अगर आपको रयूमेटिक बीमारी है या विशेष प्रकार का गठिया रोग है तो यह जरूरी है सही इलाज उचित डॉक्टर द्वारा जल्दी शुरू किया जाए। आरंभिक प्रभावी उपचार गंभीर जोड़ों की क्षति को रोक सकता है और गंभीर रयूमेटिक बीमारियों में रोगी की जान या जोड़ो के अलावा अन्य प्रमुख अंगो को क्षति से बचाने में मदद कर सकता है।

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Acknowledgement : Hindi translation done by Ms Nutan Lodha

लेखक: डॉ नीलेश नौलखा एक गठिया रोग विशेषज्ञ (रह्यूएमटोलॉजिस्ट) है। वो मेडिसिन में एमडी (MD, KEM हॉस्पिटल ), रह्यूएमटोलॉजि में डीएम (DM) है। उन्होंने रह्यूएमटोलॉजि में फेलोशिप UK (इंग्लैंड) से की है। वह मुंबई के एकमात्र रह्युमटोलॉजिस्ट है जिनके पास DM की डिग्री हैं । DM रह्युमटोलॉजी भारत में गठिया रोग के विशेषज्ञ कहलाने जाने के लिए सर्वोत्तम डिग्री है ।उनके जीवन का लक्ष्य लोगों की सेवा करना और उन तक सही मेडिकल जानकारी पहुँचाना है। उनके मरीजों का हित ही उनके लिए सर्वोपरि है। वह मुंबई के वॉकहार्ट हॉस्पिटल में प्रैक्टिस करते हैं। आप अगर उनसे संपर्क करना चाहते है तो इन लिंक्स पर क्लिक कीजिये :

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अनुवादक: हिंदी में अनुवाद श्रीमती नूतन लोढ़ा ने किया है।

अस्वीकरण: कई बार इंटरनेट पर आने वाले लेख किसी प्रमाणित मेडिकल लेखक या डॉक्टर के द्वारा नहीं लिखा जाता है। उन पर आंख मूंदकर भरोसा ना करें। हालांकि यह लेख प्रमाणित गठिया रोग विशेषज्ञ (रह्यूमेटोलॉजिस्ट) द्वारा लिखा गया है ना की किसी ब्लॉगर के द्वारा। यहाँ दी गई जानकारी सही है और प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित है।

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